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A hindi poem on childhood memories

वो दिन भी क्या ख़ास थे वो दिन भी क्या ख़ास थे, वो अठानो को जोड़कर रुपये बनाना, वो सामान के पैसो से कुछ रुपयों का बचाना, वो स्कूल में टिफ़िन recess पहले ही खा जाना, वो कैंटीन के समोसे तीन दोस्त तो तीन टुकडे ! घर आये मेहमानों का पैसे दे जाना, फिर वो पचास पैसे वाली पेप्सी, और दो वाली किस्मी बार खाना, वो  लिफ्ट ले कर के पैसे बचाना, वो ताश के पत्तो का महल बनाना, वो दिवाली में मिलने वाले कपडे, वो कंचो का खेल, वो लुका-छिपी में अच्छी जगह पर छुपना, फिर धप्पी कर के ख़ुशी से उछालना, वो दिवार पर बना कर विकेट,  खेलना बंद कमरों में क्रिकेट, जाने कहा गया वो बचपन सुहाना, क्यूँ खो गया वो पुराना ज़माना, क्यों नहीं दिखता आजकल के बच्चो में वो ख़ुशी का ठिकाना, Like, share, comment  में ही उलझा है इन का फसाना.